Himanshi Singh| 19 साल की उम्र में बन गईं टीचर, अब सड़कों पर सरकार से भिड़ रही हैं

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Himanshi Singh आज हमारी मंच की मेहमान हैं हिमांशी सिंह, जिनके बारे में कहा जाता है कि वो टीचर्स को पढ़ाने वाली टीचर हैं। मात्र 19 साल की उम्र में वो टीचर बन गई थीं और आज उनकी चर्चा हर जगह है। हाल ही में 31 जुलाई को हुए एसएससी आंदोलन में हिमांशी ने अपनी बेबाकी से सबका ध्यान खींचा। सड़कों पर उतरकर उन्होंने सरकार से सीधे सवाल किए, जिसके बाद लोग पूछने लगे- आखिर ये लड़की है कौन? आज हम उनके बारे में जानेंगे और ये समझेंगे कि आखिर वो दिल्ली की सड़कों पर क्यों उतरीं। मंच पर हिमांशी सिंह का दिल से स्वागत है!

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Himanshi Singh: टीचर्स की टीचर


Himanshi Singh|सेंट्रल टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट (CTET) पढ़ाती हैं, यानी वो उन टीचर्स को तैयार करती हैं जो भविष्य में स्कूलों में बच्चों को पढ़ाएंगे। लेकिन हाल ही में वो तब सुर्खियों में आईं, जब एसएससी आंदोलन में उनकी आवाज़ गूंजी। जंतर-मंतर पर हमारी मुलाकात हिमांशी से हुई, जहां वो पुरुष टीचर्स की भीड़ में अपनी बात जोर-शोर से रख रही थीं। उनके चेहरे पर गुस्सा साफ दिख रहा था। आखिर वो गुस्सा था किस बात का? क्या कारण था कि वो अपने स्टूडियो और इंस्टीट्यूट से निकलकर दिल्ली की सड़कों पर आ गईं?

एसएससी आंदोलन और Himanshi Singh का गुस्सा


हिमांशी बताती हैं, “निधि, हम सब जानते हैं कि सरकारी नौकरियों में कितनी समस्याएं हैं। यूपीएससी, एनडीए, सीडीएस को छोड़ दें, तो बाकी सभी कॉम्पिटिटिव एग्जाम्स में कुछ न कुछ गड़बड़ रहती है। नोटिफिकेशन नहीं आता, अगर आता है तो पेपर टाइम पर नहीं होता। पेपर हो भी जाए तो रिजल्ट में दिक्कत, कहीं पेपर लीक हो जाता है, कहीं और समस्याएं। जॉइनिंग में देरी, रिजल्ट में देरी- ये सब देखकर गुस्सा आता है।”

हिमांशी पहले भी कई बार ऐसी समस्याओं को देख चुकी हैं। वो बताती हैं कि वो प्रयागराज भी गई थीं, जहां शिक्षक भर्ती की समस्याओं को लेकर आंदोलन चल रहा था। 2017 में दिल्ली सबोर्डिनेट सर्विस सिलेक्शन बोर्ड (DSSSB) का एक पेपर लीक हुआ था, जिसके बाद केंद्रीय विद्यालय का एग्जाम दोबारा कराना पड़ा। हिमांशी कहती हैं, “मैं जब से पढ़ा रही हूं, तब से ये सब देख रही हूं। ये चीजें अंदर तक चुभती हैं। हम टीचर्स का स्टूडेंट्स के साथ आत्मीय रिश्ता होता है। हम नेताओं की तरह नहीं हैं कि वोट लिया और भूल गए। हम हर दिन स्टूडेंट्स के साथ जुड़े रहते हैं।”

जंतर-मंतर पर क्या हुआ?


31 जुलाई को हुए एसएससी आंदोलन में Himanshi Singh ने हिस्सा लिया। वो बताती हैं कि अभिनव सर ने इस आंदोलन की शुरुआत की थी और सभी टीचर्स को बुलाया था। हिमांशी कहती हैं, “मैं थोड़ा लेट हो गई थी, ये मेरी आदत भी है। जब मैं जंतर-मंतर पहुंची, तो अभिनव सर ने बताया कि पुलिस टीचर्स को उठाकर ले जा रही है।” उस दिन चार टीचर्स डीओपीटी मिनिस्टर से मिलने गए थे, लेकिन उनकी बात सुनी नहीं गई। उल्टा, उन्हें बसों में डालकर घुमाया गया, कुछ के साथ बदसलूकी हुई, किसी का हाथ टूट गया। हिमांशी बताती हैं, “मैं उस दिन पीरियड्स में थी, बारिश हो रही थी, फिर भी मैं वहां खड़ी रही। अगर मैं उस बस में होती, तो 6 घंटे तक पानी तक नहीं मिलता। ये छोटी बातें नहीं हैं। टीचर्स कोई अपराधी नहीं हैं, वो तो अपनी बात रखने गए थे।”

टीचर्स के साथ बदसलूकी और सिस्टम की नाकामी


Himanshi Singh का गुस्सा सिस्टम की नाकामी पर था। वो कहती हैं, “जो टीचर्स लाखों लोगों के लिए प्रेरणा हैं, उनके साथ ऐसा व्यवहार? राकेश यादव सर, नीतू मैम जैसे सीनियर टीचर्स, जिन्हें हम पढ़ाई के दौरान सुनते थे, उनके साथ बदसलूकी हुई। ये देखकर बहुत दुख हुआ।” वो सवाल उठाती हैं कि आखिर सरकार इतनी बेरुखी क्यों दिखाती है? क्यों नहीं टीचर्स और स्टूडेंट्स की बात सुनी जाती?

हिमांशी ने एक और मुद्दा उठाया- जेंडर न्यूट्रल भाषा। वो कहती हैं, “हर जगह ‘चेयरमैन’ लिखा होता है, चाहे वो पद पर महिला हो। ‘चेयरपर्सन’ लिखना चाहिए। ये छोटी सी बात है, लेकिन इसका बड़ा असर है।”

शिक्षक भर्ती की बदहाल स्थिति


Himanshi Singh शिक्षक भर्ती की समस्याओं पर भी खुलकर बोलीं। वो कहती हैं, “हर राज्य में शिक्षक भर्ती की हालत खराब है। यूपी में 7 साल से प्राइमरी लेवल पर भर्ती नहीं आई। बिहार में 5-7 साल बाद अचानक लाखों भर्तियां निकाल दी जाती हैं। क्या ये तरीका है? हर साल थोड़ी-थोड़ी भर्तियां निकालें, ताकि सिस्टम सुचारू रहे।” वो सवाल करती हैं कि जब देश में इतने बीएड और डीएलएड कर रहे हैं, तो उनकी नौकरी का क्या?

बीएड वालों का दर्द


Himanshi Singh ने एनसीटीई के 2018 के फैसले का जिक्र किया, जिसमें कहा गया था कि बीएड वाले भी प्राइमरी टीचर बन सकते हैं। लेकिन 2023-24 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे पलट दिया। हिमांशी कहती हैं, “6 साल तक लोगों ने बीएड किया, फॉर्म भरे, पेपर दिए, लेकिन अब वो एलिजिबल नहीं हैं। ये स्टूडेंट्स का मनोबल तोड़ने वाली बात है।”

Himanshi Singh की जिंदगी: गांव से दिल्ली तक


Himanshi Singh की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। बुलंदशहर में 14 साल तक रहीं, गांव की जिंदगी जी। साइकिल से 20 किमी दूर स्कूल जाती थीं। वो कहती हैं, “गांव की जिंदगी ने मुझे सिखाया कि मेहनत का महत्व क्या है। वहां लोग सुबह 4 बजे उठकर भर्ती की तैयारी करते हैं। उनके लिए नौकरी पूरे खानदान की उम्मीद होती है।” दिल्ली आने के बाद उनकी जिंदगी बदली। 19 साल की उम्र में डीएलएड किया और सीटेट पास कर लिया। 2016 में उन्होंने यूट्यूब चैनल ‘लेट्स लर्न’ शुरू किया, जो आज लाखों स्टूडेंट्स की मदद कर रहा है।

पहली कमाई और ऑडी की कहानी


Himanshi Singh की पहली यूट्यूब वीडियो डेढ़ मिनट की थी, जिसमें वो सीटेट की टिप्स दे रही थीं। वो हंसते हुए कहती हैं, “मुझे नहीं पता था कि यूट्यूब से पैसे मिलते हैं। दो साल बाद पहली बार 6000 रुपये की कमाई हुई।” ऑडी की बात पर वो कहती हैं, “मैं थोड़ी कंजूस हूं, लेकिन ड्राइविंग का शौक है। 15 गाड़ियां टेस्ट ड्राइव की, फिर ऑडी पसंद आई। पूरी कमाई से ली, लोन की जरूरत नहीं पड़ी।”

Himanshi Singh शादी और ट्रोलिंग पर खुलकर बोलीं


शादी के सवाल पर हिमांशी हंसते हुए कहती हैं, “शादी मेरी प्रायोरिटी नहीं है। मैं अपनी ड्रीम लाइफ जी रही हूं। अगर कोई ऐसा मिले जो झूठ न बोले, तो बात बन सकती है।” ट्रोलिंग पर वो कहती हैं, “अगर आलोचना में दम है, तो सुधार लो। अगर सिर्फ मजाक उड़ाना है, तो इग्नोर करो।”

सपनों का पीछा और चुनौतियां


Himanshi Singh ने अपने निजी जीवन के दुख भी साझा किए। 2019 से 2023 तक उन्होंने अपने पिता, मामा, मामी, नाना-नानी को खोया। वो कहती हैं, “मेरे पिता की मौत में सिस्टम की नाकामी थी। सही समय पर फर्स्ट एड नहीं मिला। ये दर्द अभी भी है।” लेकिन वो हार नहीं मानतीं। वो कहती हैं, “जिंदगी में मुश्किलें आती हैं, लेकिन स्टूडेंट्स के लिए हमें लड़ते रहना है।”

आखिर क्यों इतना गुस्सा?


जंतर-मंतर पर हिमांशी की आक्रामकता का कारण था सिस्टम का रवैया। वो कहती हैं, “टीचर्स को अपराधी की तरह ट्रीट किया गया। माउस काम नहीं करता, सेंटर पर भैंस बंधी होती है, डीजे बजता है- ये डिजिटल इंडिया है? स्टूडेंट्स का भविष्य दांव पर है, और सरकार को फुर्सत नहीं है।”

हिमांशी का मैसेज


Himanshi Singh का कहना है, “रोजगार को प्रायोरिटी बनाएं। कोई भी सरकार हो, उसे स्टूडेंट्स और टीचर्स की बात सुननी चाहिए। अगर चुनाव समय पर हो सकते हैं, तो एग्जाम्स क्यों नहीं? हम बस इतना चाहते हैं कि पेपर टाइम पर हों, रिजल्ट टाइम पर आएं, और सिस्टम सुचारू हो।”

आपके सवाल
हमारी बातचीत के दौरान कुछ यूजर्स ने सवाल पूछे। रिचा ने बिहार में डोमिसाइल नीति पर सवाल किया। Himanshi Singh ने कहा, “बिहार के लोगों को प्राथमिकता देना ठीक है, लेकिन भर्तियां हर साल होनी चाहिए।” अनी मिश्रा ने यूपी में प्राइमरी भर्ती की मांग की। हिमांशी ने उनका समर्थन करते हुए कहा, “7 साल से भर्ती नहीं आई। ये गलत है।”

मंच पर अनुभव


Himanshi Singh ने मंच पर अपने अनुभव को शानदार बताया। वो कहती हैं, “आपकी पूरी टीम बहुत गर्मजोशी से मिली। स्टूडेंट्स और टीचर्स के मुद्दों को उठाते रहें। अगर मीडिया नहीं बोलेगा, तो कौन बोलेगा?”

हिमांशी सिंह की ये कहानी न सिर्फ प्रेरणादायक है, बल्कि एक सवाल भी छोड़ती है- आखिर कब सुधरेगा हमारा सिस्टम? कब मिलेगा स्टूडेंट्स और टीचर्स को उनका हक? आप क्या सोचते हैं, हमें कमेंट्स में बताएं।


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